सनावद/ सनावद नगरी तप ओर साधना से तप कर अपने मार्ग को वैराग्य की ओर अग्रसर हो रहे साधु संतो की नगरी हे।
सन्मति जैन काका ने बताया की 25 वर्षों के बाद पूज्य मुनि श्री अपनी जन्मभूमि पर प्रयोग सागर प्रबोध सागर महाराज का मंगल आगमन हुआ इस अवसर पर
सभी समाज जनों द्वारा द्वय मुनिराजो का पाद प्रक्षालन एवम आरती कर स्वागत वंदन किया।
शहर के मुख्य मार्गों से होकर जुलुश जैन धर्मशाला में सभा के रूप में परिवर्तित हुवा। जहा सर्वप्रथम दोनो आचार्य श्री के चित्र के समक्ष बहार से पधारे अथितियो के द्वारा चित्र अनावरण एवम दीप प्प्रजलन किया गया। मंगलाचरण प्रदीप पंचोलिया ने किया तत्पश्चात स्वागत नृत्य गवाक्षी कर्णिका,नव्या के द्वारा किया जहा धर्म सभा में अगली कडी में मुनि प्रबोध सागर जी ने अपनी वाणी से रसपान करवाते हुवे कहा की आज जो दिखने में आता है उसे प्रदर्शन कहते हैं। लेकिन अंतर की ओर जो ले जाता है वह दर्शन है। महाराज श्री ने कहा प्रदर्शन के द्वारा ही दर्शन की अनुभूति का सौभाग्य मिलता है। इस घोर पंचम काल में भी इतनी वीतरागता के प्रति इतनी आस्था को लेकर चल रहे हैं। इसे देख बहुत आनंद होता है। यह व्यक्ति विशेष की प्रभावना नहीं है। यह वीतरागता की प्रभावना है। उन्होंने कहा व्यक्ति विशेष की प्रभावना नहीं होती है प्रभावना होती है वीतराग धर्म की। और जो भी उनके प्रति प्रयत्नशील हैं उन्हीं की प्रभावना होती है। आज का वातावरण देखकर ऐसा लगा कि पंचम काल में भी वीतरागता के प्रति अटूट श्रद्धा है। उन्होंने कई उदाहरण के माध्यम से वीतरागता के प्रति समझाया।
इसके बाद पूज्य मुनि श्री प्रयोग सागर महाराज ने अपना उद्बोधन दिया तो सभी भाव विभोर हो गए 27वर्षों के बाद जब पूज्य मुनि श्री प्रयोग सागर महाराज ने अपनी जन्म भूमि पर प्रवचन दिया तो वह बहुत ही भावुक थे और उन्होंने बहुत ही प्रेरणादायक उद्बोधन देते हुए कहा कि दादाजी,माता-पिता ने तो हमें संस्कार दिए और उन्होंने आज संस्कार दिए इसलिए आज हम मुनि अवस्था में हैं। महाराज श्री ने आगे कहा उन्होंने कहा साधु संत और सज्जन पुरुष जो होते हैं वह कभी दूसरों ने जो उपकार किए हैं उन्हें कभी भूलते नहीं। आज जहा बैठा हु उस सनावद समाज घर परिवार के प्रति साथ में पढ़े मित्रगण जो यहां बैठे हैं। उन सभी से यह कहता हूं कि यह संकल्प ले की महाराज जी आप जहां भी रहेंगे हम एक वर्ष में एक बार वहा जरूर आएंगे।
माता-पिता ने तो हमें संस्कार दिए लेकिन उन संस्कारों की शुरुआत और उन वैराग्य का बीजारोपण जिन्होंने किया वह वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज हैं। उन्होंने कहा मात्र बीजारोपण से कुछ नहीं होगा समय-समय पर उस पर खाद पानी भी आवश्यक होता है। बीजारोपण तो आचार्य श्री वर्धमान सागर महाराज ने किया एवं उसे खाद पानी देने का काम आर्यिका 105श्री पूर्णमति माताजी ने किया। स्मृति को लाते हुए कहा यह वही धर्मशाला है जहां माताजी का चातुर्मास हुआ था। उनकी प्रेरणा और उनके संस्कारों का ही प्रभाव था कि आज हम इस अवस्था में बैठे हैं। सनावद की जन्मभूमि जिसने ऐसे सपूत दिए जो श्रमण संस्कृति की ध्वजा को फहरा रहे हैं। और सबसे पहले आचार्य श्री वर्धमान सागर महाराज का नाम आता है। और इस जन्म भूमि से महान संतों ने जन्म लिया उसका एकमात्र कारण है क्योंकि यह सनावद की जन्मभूमि तीन सिद्ध क्षेत्र से घिरी है, जिसमें सिद्धवरकूट, ऊन पावागिरी, बावनगजा जिन्होंने सिद्ध पद को प्राप्त किया उनके सिद्ध परमाणुओं का प्रभाव है कि इस निमाड़ की वसुंधरा ने 17 पिछीधारी संतो को जन्म दिया। आगे भी रहेगी। संस्कारों का प्रभाव है कि यह परंपरा आज भी जारी है। उन्होंने जन्मभूमि के प्रति कृतार्थ करते हुए कहा कि जननी मां जन्मभूमि का गौरव स्वर्ग से भी ऊपर है।।
इस अवसर पर केवल सनावद ही नहीं निकट के सभी नगरों की समाज बड़वाह, खंडवा, भीकनगांव, इंदौर,बुरहानपुर,पंधाना, बेडिया, महेश्वर, मंडलेश्वर ,धामनोद हजारों की संख्या में समाज जन उपस्थित रहै। दोनो मुनिराज ने नगर के सभी जिनालयों के दर्शन किए। अंत में मुनि श्री प्रबोध सागर जी महाराज के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य प्रकाश चंद जैन इंदौर बालसमुद परिवार को प्राप्त हुवा वही शास्त्र भेट करने का शोभाग्य सावित्री भाई कैलाश चंद जटाले राजेश हीरो परिवार को प्राप्त हुआ। वही मुनि श्री प्रबोध सागर जी महाराज के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य पवन कुमार विनीश कुमार गोधा परिवार को मिला एवं शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य आशीष बंटी इंजिनियर धार को प्राप्त हुवा समाज द्वारा इनका स्वागत किया। इस अवसर पर सभी समाज जन उपस्थित थे।