शिर्डी के साई बाबा का मोरटक्का से गहरा संबंध

खोज खबर (सुनील परिहार)

बड़वाह/मोरटक्का—शिरडी के श्री साई बाबा का मध्य प्रदेश स्थित मोरटक्का जैसे छोटे से गांव से इतना गहरा संबंध है
कभी किसी ने सोचा नहीं था लेकिन जब सनावद गया तो बीच रास्ते मे मोरटक्का आया, तब रास्ते किनारे श्री शाम साई सदन पर नजर पड़ी रुकर दर्शन किए!

एक सामान्य सा मोरटक्का गांव, जैसे शिरडी के श्री साई बाबा के आशीर्वचनों से प्रेरित संतो की पुण्यभूमि!

श्री शाम साई सदन श्री संस्थान की स्थापना , श्री साई बाबा के परम शिष्य , सिद्ध श्री उद्धवेश गंगाधर रानडे , (श्री शाम साई , सूत शाम दास बाबा, रानाडे बाबा) ने 1936 में की पूज्य शाम बाबा , संतश्रेष्ठ, शिरडी के श्री साई बाबा के शिष्य थे!

श्री शाम बाबा के जीवन चरित्र से पता चला है उनकी श्री साई बाबा से सात बार भेट हुई थी (1906 से लेकर 1918 तक)
उनकी दूसरी भेट में श्री साई बाबा ने उनका नामकरण कर उनको शाम दस नाम दिया
कहा जाता है श्री शाम बाबा को श्री साई बाबा ने को भेट स्वरुप अपनी ‘दाढ़’ दी जो आज भी आश्रम में है
आश्रम में श्री शाम साई के कुछ वस्तुओं का भी संग्रह है
समाधी मंदिर के सामने श्री शाम साई के प्रिय श्वान की समाधी है .

1914 में श्री शाम साई को श्री साई बाबा ने आदेश दिया,अब आपको शिरडी आने की जरुरत नहीं .. नर्मदा किनारे रहिये ” तब से श्री शाम साई , इसी परिसर में रहते थे …तब यहाँ बहुत घना जंगल हुआ करता था ..हर प्रकार के हिंस्त्र जानवरों का संचार था .

प.पु.भक्तराज महारज के अतीत से जुडी कुछ घटनाओं का यह आश्रम साक्षी रहा है

प.पु भक्तराज महाराज को, सद्गुरु प्राप्ति से पहले ..आध्यात्मिक मार्गदर्शक का आभाव व्याकुल करता था .. उस दौरान , प. पु.बाबा (प.प.भक्तराज महाराज ) का इंदौर में निवास था,प.पु. बाबा के बड़े भाई ने प.पु बाबा की भाव विभोर मनस्थिति को देखकर उनको श्री शाम साई से मिलाने खेड़ीघाट ले आये
श्री शाम साई के कहने पर , प.पु.बाबा , इसी आश्रम में एक पिपल के वृक्ष के नीचे बैठकर , श्री गुरुचरित्र के 41 , 42 अध्याय का वाचन करते थे

(वाचन करते थे… श्री गुरुचरित्र का , लेकिन सामने प्रतिमा रखते थे पूज्य श्री साईं बाबा की)

प.पु भक्तराज महाराज के जीवन की…जीवन को निर्णायक दिशा दर्शानेवाली , एक महत्वपूर्ण घटना इसी आश्रम में हुई थी .

1956 श्री दिनकर कसरेकर’ (प.पु.भक्तराज महाराज ) को इसी मोरटक्का तट पर ,अपने सद्गुरु प.पु, अनंतानंद साइश से , दीक्षा प्राप्त हुई थी ….अपना सर्वस्व ‘दिनकर’ ने अपने सद्गुरु के चरणों में अर्पण कर दिया था

दीक्षा प्रदान करने के बाद प.पु.साइश ‘दिनकर’ को पहले अपने सद्गुरु , प.पु. चन्द्रशेखरानंद जी के आश्रम लेकर आये …फिर रात को बाकि भक्तो के साथ प.पु .साइश ने शाम साई आश्रम में विश्राम किया ..

दुसरे दिन , वसंत पंचमी के शुभ अवसर पे प.पु. साइश ने ‘ दिनकर ‘ को ‘भक्तराज’ बनाया !